आज का नवयुगीन मानव सांसारिक मोह, माया और क्रूरता से परिपूरित होकर एक मिथ्या जीवन व्यतीत कर रहा है। जहॉं पौराणिक काल में मानव अपने आप को दैनिक व्यवसायिक, पारिवारिक एवं धार्मिक कार्यों में लीन कर, जीवन को संतुलित करता था वहीं नवयुगीन मानव आडम्बर व व्यर्थ दिखावे में मोहबद्ध होकर, अपने जीवन के घटनाचक्र को पूर्णतया असंतुलित किए जा रहा है। जीवन के ऐसे कष्ट जिन्हें मात्र दान धर्म या कर्म काण्ड द्वारा दूर किया जा सकता है या जिनका प्रभाव निम्न किया जा सकता है, उनसे व्यर्थ ही परेशान होता रहता है। जब मानव जीवन अधार्मिक कार्यो से व्यथित होता है तो कहीं न कहीं ज्योतिष व अन्य क्रियाएं व्यक्ति के जीवन घटनाचक्र को संतुलित करने में कारगर सिद्ध हुए हैं। ज्योतिष व कर्म काण्ड द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास कर समय रहते उनका निवारण एवं समाधान करने में समर्थ है। पौराणिक काल में इस प्र्रकार की विद्याएॅ विशेषज्ञों, ज्ञानियों व वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोग कर राजा महाराजाओं को भविष्य में होने वाली घटनाओं व आपदाओं से अवगत कराया जाता था और समय रहते इनका प्रत्यावर्ती निर्धारित किया जाता था। जिस प्रकार ये विद्याएं भूतकालीन व पूर्वकालीन परिस्थितियों में कारगर सिद्ध हुई हैं उसी प्रकार आज भी प्रभावोत्पादक हैं। आज भी व्यक्ति विशषज्ञों द्वारा इन विद्याओं का प्रयोग कर मानसिक, शारिरिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत, सामाजिक, सामुदायिक, व्यवसायिक, आर्थिक आदि समस्याओं का निवारण किया जा सकता है।
श्री दुर्गा हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें केवल देवी और शक्ति भी कहते हैं। [1][2] शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं जिनकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं।
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